सेंटर फॉर इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी की प्रमुख डा. नीति शिखा से बातचीत

एक सभ्य समाज के सुचारु संचालन में कुछ नियमों और कानूनों का होना अवश्यम्भावी है। देश, काल और परिस्थितियों के अनुसार इन नियमों और कानूनों का निर्धारण होता है। कुछ कानून अलिखित होते हैं तो कुछ लिखित। समय समय पर नए कानूनों को लागू किया जाता है तो पुराने कानूनों का समापन भी किया जाता है। कहावत है कि यदि रुका हुआ पानी और अप्रासंगिक कानून लंबे समय तक पड़े रहें तो बीमारियों और परेशानियों का सबब बन जाते हैं। यही कारण है कि दुनिया भर की सरकारें समय समय पर पुराने कानूनों को या तो समाप्त कर देती हैं या उनमें संशोधन करती हैं। भारत में भी वर्तमान सरकार ने पुराने और बेकार कानूनों को तेजी से समाप्त करने की ओर ध्यान केंद्रीत किया है। एनडीए सरकार के पिछले कार्यकाल में लगभग 2 हजार ऐसे बेकार और अप्रासंगिक कानूनों को समाप्त करने के बाद इस बार भी सरकार इस ओर गंभीर बनी हुई है। हाल ही केंद्र सरकार ने अपने सभी मंत्रालयों को पत्र लिख कर एक निश्चित समय सीमा के भीतर अपने विभाग से संबंधित ऐसे कानूनों की सूची सौंपने को कहा है जो अब प्रयोग में नहीं हैं। 

इसी विषय पर आजादी.मी ने मिनिस्ट्री ऑफ कॉरपोरेट अफेयर्स के तहत आने वाले इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ कॉरपोरेट अफेयर्स के सेंटर फॉर इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी की प्रमुख डा. नीति शिखा से बात की। प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंशः

प्रश्नः नए कानूनों का निर्माण और पुराने कानूनों का समापन एक सभ्य समाज के लिए कितना महत्वपूर्ण है?
उत्तरः
 हमारे देश में ऐसे लोगों की संख्या काफी कम है जो विभिन्न प्रकार के कानूनों की जानकारी रखते हैं जबकि कानूनों की समझ रखने वालों की संख्या और भी कम है। एक समाज के लिए यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिसके लिए नियम कानून बने हैं उन्हें ही इसकी जानकारी और समझ नहीं है। क्योंकि आप यह कहकर बच नहीं सकते कि आपको उक्त कानून के बारे में जानकारी नहीं थी। इसलिए मेरा मानना है कि नए कानूनों का बनना और पुराने कानूनों का समापन जितना जरूरी है उतना ही कानूनों से लोगों को अवगत कराना भी जरूरी है। लेकिन हम अब तक ऐसी व्यवस्था नहीं कर सके हैं कि लोगों को कम से कम उन कानूनों की जानकारी अवश्य हो सके जिसकी जद में वे आते हैं।

प्रश्नः कानून की किताबों में अब भी तमाम ऐसे कानून मौजूद हैं जो ब्रिटिश सरकार के समय के हैं। क्या इन्हें समाप्त नहीं कर दिया जाना चाहिए?
उत्तरः 
यह सच है कि हमारे देश में ऐसे ढेरों कानून मौजूद हैं जो अंग्रेजी हुकूमत के समय लागू किये गए थे। यह भी सच है कि उनमें से अधिकांश अब पुराने और अप्रासंगिक हो गए हैं। पुराने कई कानून नए बने कानूनों के द्वारा सुपरसीड भी होते है। ऐसे कानूनों का समापन बेहद जरूरी है। उदाहरण के लिए ‘नायक एक्ट’ जैसा कानून जिसमें डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को यह शक्ति प्रदत्त थी कि वह एक जाति/वर्ग विशेष की युवतियों की शादी उनके अभिभावकों की रजामंदी के खिलाफ करा सकते थे। उस समय कुछ परिस्थितियां रही होंगी जिसके कारण ऐसे कानून को बनाने की जरूरत पड़ी। लेकिन वर्तमान में इस कानून के जारी रहने का कोई खास कारण दिखाई नहीं देता इसलिए इसे समाप्त किया जाना जरूरी है। हालांकि किसी कानून को समाप्त करने का सिर्फ यह कारण नहीं होना चाहिए कि वह बहुत पुराना है। यदि कोई कानून अब भी प्रासंगिक है तो उसे लागू रहना चाहिए, हां यह अवश्य होना चाहिए कि पुराने कानूनों का समय समय पर अवलोकन हो और उनकी प्रासंगिकता की जांच की एक प्रक्रिया तय हो।

प्रश्नः आपके हिसाब से ऐसी कौन सी प्रक्रिया हो सकती है जिसके तहत कानून समय समय पर स्वतः ही समाप्त हो जाए?
उत्तरः 
नए कानूनों को बनाने की प्रक्रिया बहुत जटिल होती है और पुराने कानूनों को समाप्त करने की प्रक्रिया उससे भी अधिक जटिल होती है। इसलिए कई देश ऐसे हैं जिन्होंने अपने यहां कानूनों को बहुत संक्षिप्त रखा है यानि कि वे बहुत अधिक विस्तृत नहीं है। लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं है कि तमाम मुद्दे उन कानूनों से कवर नहीं होते। कहने का मतलब है कि कानून कम हों और व्यापक हों। कई देशों ने अपने यहां सनसेट क्लॉज जैसा प्रावधान कर रखा है। यानि कि एक तय सीमा के बाद कानून विशेष स्वतः ही समाप्त हो जाते हैं। यदि उन कानूनों को जारी रखना है तो एक प्रक्रिया का पालन करना होता है और अगली समयावधि के लिए उसे लागू किया जाता है। इसका व्यापक प्रचार भी किया जाता है। हालांकि अपने देश में सभी प्रकार के कानूनों पर सनसेट क्लॉज लागू हो यह भी अव्यवहारीक है। अच्छा हो कि भारत जैसे देश में एक रिपील लॉ डे बनाया जाए जिस दिन कानून बनाने के लिए जवाबदेह व्यक्ति और संस्थाएं एक साथ बैठें और आपसी रजामंदी से पुराने और अप्रासंगिक कानूनों पर चर्चा कर उन्हें समाप्त करें।

प्रश्नः यदि देश के भीतर की बात करें तो तमाम ऐसे राज्य हैं जो दूसरे राज्यों के कानून विशेष को अपने यहां लागू करते हैं। लेकिन यह भी देखने को भी मिलता है कि कानून लागू करने वाले मूल राज्य से वह कानून समाप्त हो गया है लेकिन उसे अपने यहां विस्तारित करने वाले राज्य में वह कानून फिर भी जारी रहता है। क्या ऐसी कोई प्रक्रिया है जिससे ऐसे कानून स्वतः समाप्त हो जाएं?
उत्तरः
 यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न है। मैं ऐसी स्थिति को राज्यों के आलस्य का परिणाम मानती हूं। साथ ही राज्यों के विधि आयोगों के कार्य करने के तरीके पर भी सवालिया निशान लगते हैं कि आखिर वहां क्या काम हो रहा है? चूंकि राज्यों के विधि आयोगों को अत्यंत महत्वपूर्ण शक्तियां प्रदान हैं और केंद्रीय विधि आयोग चाह कर भी उनको समाप्त नहीं कर सकता है। ऐसा राज्यों के विधि आयोगों के माध्यम से ही हो सकता है और राज्यों के विधानसभा से ही उनका समापन हो सकता है। इस समस्या का एक समाधान यह हो सकता है कि केंद्र स्तर पर एक रजिस्टर हो जहां राज्यों के सभी कानूनों से संबंधित सूचनाएं दर्ज हो। वहां एक आटोमेटेड प्रक्रिया हो कि किसी भी राज्य के कानूनों में कोई बदलाव हो तो उसकी सूचना केंद्रीय रजिस्टर तक पहुंच जाए। वहां से सभी राज्यों को यह सूचना मिल जाए ताकि वे भी उस कानून के रहने या समाप्त होने के बाबत फैसला ले सकें। एक काम और हो सकता है कि किसी भी स्तर पर चाहे केंद्रीय स्तर पर अथवा राज्य स्तर कोई कानून बने तो उसके साथ इस बात की व्याख्या की जाए कि वह पूर्व के किन किन कानूनों को प्रभावित करेगा और उसका असर कहां कहां होगा ताकि आगे से उन विषयों से संबंधित मामलों में नए कानूनों का प्रयोग हो सके।

जारी है…

आजादी.मी

लेखक के बारे में

अविनाश चंद्र

अविनाश चंद्र वरिष्ठ पत्रकार हैं और सेंटर फॉर सिविल सोसायटी के सीनियर फेलो हैं। वे पब्लिक पॉलिसी मामलों के विशेषज्ञ हैं और उदारवादी वेब पोर्टल आजादी.मी के संयोजक हैं।

डिस्क्लेमर:

ऊपर व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं और ये आवश्यक रूप से आजादी.मी के विचारों को परिलक्षित नहीं करते हैं।

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