जन्मदिन विशेषः समाजवाद और साम्यवाद के घोर विरोधी ‘राजाजी’

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी का जन्म 10 दिसंबर 1878 को तमिलनाडु के कृष्णागिरी जिले के थोरापल्ली गाँव के एक तमिल ब्राह्मण परिवार में हुआ था। अपने समधी महात्मा गांधी (राजाजी की पुत्री लक्ष्मी का विवाह गांधीजी के सबसे छोटे पुत्र देवदास गांधी से हुआ था) द्वारा दिये गए पुकार के नाम के कारण देशवासियों के बीच वे राजाजी के नाम से लोकप्रिय हुए।

सन 1900 के आस-पास उन्होंने वकालत प्रारंभ किया जो धीरे-धीरे जम गया। वकालत के दौरान प्रसिद्ध राष्ट्रवादी बाल गंगाधर तिलक से प्रभावित होकर उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया और सालेम नगर पालिका के सदस्य और फिर अध्यक्ष चुने गए। देश के बहुत सारे बुद्धजीवियों की तरह वह भी भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के सदस्य बन गए और धीरे-धीरे इसकी गतिविधियों और आंदोलनों में भाग लेने लगे। उन्होंने कांग्रेस के कलकत्ता (1906) और सूरत (1907) अधिवेशन में भाग लिया। 

वह एनी बेसेंट और सी. विजयराघव्चारियर जैसे नेताओं से बहुत प्रभावित थे। जब महात्मा गाँधी स्वाधीनता आन्दोलन में सक्रीय हुए तब राजगोपालाचारी उनके अनुगामी बन गए। इसके पश्चात उन्होंने असहयोग आन्दोलन में भाग लिया और अपनी वकालत छोड़ दी। वर्ष 1921 में उन्हें कांग्रेस कार्य समिति का सदस्य चुना गया और वह कांग्रेस के महामंत्री भी रहे।

सन 1922 में कांग्रेस के गया अधिवेशन में उन्हें एक नयी पहचान मिली। उन्होंने ‘गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट 1919’ के तहत अग्रेज़ी सरकार के साथ किसी भी सहयोग का विरोध किया और ‘इम्पीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल’ के साथ-साथ राज्यों के ‘विधान परिषद्’ में प्रवेश का भी विरोध कर ‘नो चेन्जर्स’ समूह के नेता बन गए। ‘नो चेन्जर्स’ ने ‘प्रो चेन्जर्स’ को पराजित कर दिया जिसके फलस्वरूप मोतीलाल नेहरु और चितरंजन दास जैसे नेताओं को इस्तीफा देना पड़ा। 

गाँधी जी का सान्निध्य :

वर्ष 1915 में गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका से लौट कर भारत आये थे और आते ही देश के स्वतंत्रता संग्राम को गति प्रदान करने में जुट गये थे। चक्रवर्ती भी देश के हालात से अनभिज्ञ नहीं थे, वह वकालत में उत्कर्ष पर थे। 1919 में गाँधी जी ने रॉलेक्ट एक्ट के विरुद्ध सत्याग्रह आन्दोलन प्रारम्भ किया। इसी समय राजगोपालाचारी गाँधी जी के सम्पर्क में आये और उनके राष्ट्रीय आन्दोलन के विचारों से प्रभावित हुए। गाँधी जी ने पहली भेंट में उनकी प्रतिभा को पहचाना और उनसे मद्रास में सत्याग्रह आन्दोलन का नेतृत्व करने का आह्वान किया। उन्होंने पूरे जोश से मद्रास सत्याग्रह आन्दोलन का नेतृत्व किया और गिरफ्तार होकर जेल गये। जेल से छूटते ही चक्रवर्ती ने अपनी वकालत और तमाम सुख सुविधाओं को त्याग दिया और पूर्ण रूप से देश के स्वतंत्रता संग्राम को समर्पित हो गये। सन् 1921 में गाँधी जी ने नमक सत्याग्रह आरंभ किया।

इसी वर्ष वह कांग्रेस के सचिव भी चुने गये। इस आन्दोलन के तहत उन्होंने जगजागरण के लिए पदयात्रा की और वेदयासम के सागर तट पर नमक क़ानून का उल्लंघन किया। परिणामस्वरूप उन्हें गिरफ्तार कर पुन: जेल भेज दिया गया। इस समय तक चक्रवर्ती देश की राजनीति और कांग्रेस में इतना ऊँचा क़द प्राप्त कर चुके थे कि गाँधी जी जैसे नेता भी प्रत्येक कार्य में उनकी राय लेते थे।

1937 में चक्रवर्ती के नेतृत्व में कांग्रेस ने मद्रास प्रांत में विजय प्राप्त की। उन्हें मद्रास का मुख्यमंत्री बनाया गया। 1946 में देश की अंतरिम सरकार बनी। उन्हें केंद्र सरकार में उद्योग मंत्री बनाया गया। 1947 में देश के पूर्ण स्वतंत्र होने पर उन्हें बंगाल का राज्यपाल नियुक्त किया गया। 1950 में वे पुनः केंद्रीय मंत्रिमंडल में ले लिए गए। इसी वर्ष सरदार पटेल की मृत्यु के पश्चात वे केंद्रीय गृहमंत्री बनाए गए। 1952 के आम चुनावों में लोकसभा सदस्य बने और मद्रास के मुख्यमंत्री निर्वाचित हुए। कुछ वर्षों बाद कांग्रेस की नीतियों के विरोध में उन्होंने मुख्यमंत्री पद और कांग्रेस दोनों को ही छोड़ दिया और अपनी पृथक स्वतंत्र पार्टी की स्थापना की।

राजाजी के सपनों का भारतः

राजाजी किस प्रकार के भारत की कल्पना करते थे, यह द हिंदू समाचार पत्र में प्रकाशित एक खुले पत्र से स्पष्ट होता है। पत्र के अनुसारः

मैं चाहता हूं कि भारत का माहौल उस डर से मुक्त हो, जैसा आजकल हो गया है, जहां उत्पादन या व्यापार के कठिन काम में जुटा हुआ ईमानदार व्यक्ति अधिकारियों, मंत्रियों और पार्टी के आकाओं के हाथों में ठगे जाने के भय से आजाद होकर अपना कारोबार कर सके।

मैं ऐसा भारत चाहता हूं, जहां योग्यता और ऊर्जा को कार्य करने का स्कोप होसिल हो। साथ ही इसमें उन्हें किसी के आगे नाक न रगड़नी पड़े और अधिकारियों एवं मंत्रियों से विशेष वैयक्तिक अनुमति प्राप्त करने की जरूरत न हो। जहां उनके प्रयासों का मूल्यांकन भारत और विदेशों में खुले बाजार द्वारा किया जाए। 

मैं चाहता हूं कि परमिट लाइसेंस का गहरा कोहरा हम लोगों पर हावी न हो जाए। मैं चाहता हूं कि राज्य नियंत्रणवाद (राज्यवाद) समाप्त हो जाए और सरकार अपने सुचारू रूप से अपने कार्यों को अंजाम देने लगे। 

मैं चाहता हूं कि सरकारी प्रबंधन की अकुशलता दूर हो जाए जहां निजी प्रबंधन की प्रतिस्पर्धात्मक अर्थव्यवस्था कार्यों की देख रेख करे।

मै चाहता  हूं कि इस परमिट लाइसेंस राज का भ्रष्टाचार दूर हो।

मैं संपत्ति, भूमि और अर्जन के अन्य सभी रूपों के सभी स्वामियों के लिए सुरक्षा चाहता हूं। उनके ऊपर डैमोकल की तलवार भी नहीं लटकी रहे जो उन्हें स्वामित्व हरण की धमती देती हो। साथ ही उन्हें औचित्यपूर्ण और संपूर्ण प्रतिपूर्ति का भूगतान भी प्राप्त न हो पाए जो कि सही सिद्धांतों के आधार पर न्यायिक प्राधिकारियों द्वारा निहित की गई हो, न कि राजनैतिक विधान की मनमानी के अनुसार। 

मैं चाहता हूं कि मौलिक अधिकारों को उनके मूल स्वरूप और अखंडित रूप में बनाए रखा जाए।

मैं एक ऐसा भारत चाहता हूं जहां उच्च प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कर निजी पूंजी निर्माण में बाधक न बनें और वे उद्यम और प्रयास को हतोत्साहित न करें।

मैं एक ऐसा भारत चाहता हूं जहां केंद्र का बजट मुद्रा स्फीति और अत्यंत उच्च कीमतों को पैदा न करे।

मैं एक ऐसा भारत चाहता हूं जहां राज्य पूंजीगत निवेश पर कर न लगाए जो कि किसानों की वर्तमान पीढ़ी के जीवन को दूभर बना देता है।

मैं एक ऐसी सशक्त पार्टी चाहता हूं जो सत्तारूढ़ पार्टी की वास्तविक विरोधी पार्टी हो, चाहे वह कोई भी पार्टी क्यों न हो, ताकि लोकतंत्र के पहिये एक सीधी सड़क पर दौंडें।

सम्मान और पुरस्कार:

वर्ष 1954 में भारतीय राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले राजाजी को भारतरत्न से सम्मानित किया गया। जो गहराई और तीखापन उनके बुद्धि चातुर्य में था वही उनकी लेखनी में भी था। वे तमिल और अंग्रेजी के बहुत अच्छे लेखक थे। गीता और उपनिषदों पर उनकी टीकाएं प्रसिद्ध हैं।चक्रवर्ती थरोमगम पर साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत किया गया। नशाबंदी और स्वदेशी वस्तुओं विशेषकर खादी के प्रचार-प्रसार में उनका योगदान महत्वपूर्ण माना जाता है। अपनी वेशभूषा से भारतीयता के दर्शन कराने वाले इस महापुरुष का 28 दिसंबर 1972 को देहांत हो गया।

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Azadi.me
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ऊपर व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं और ये आवश्यक रूप से आजादी.मी के विचारों को परिलक्षित नहीं करते हैं।

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