जाएं तो जाएं कहांः उत्पादन कम तो परेशानी, उत्पादन अधिक तो परेशानी!

अर्थशास्त्र के किताबी ज्ञान से दूर दूर तक का संबंध न रखने वाला एक आम व्यक्ति भी इतनी जानकारी अवश्य रखता है कि बाजार में यदि किसी वस्तु की आपूर्ति उसकी मांग से कम है तो वस्तु की कीमत बढ़ जाती है। ठीक उसी प्रकार यदि मांग की तुलना में वस्तु की आपूर्ति बढ़ जाती है तो उसकी कीमतों में कमी आ जाती है। यह बात और है कि व्यक्ति अपने वोट के माध्यम से बनी हुई सरकार पर बढ़ी हुई कीमतों से राहत दिलाने का दबाव बनाने की कोशिश करता है। ‘लोकतांत्रित’ ढंग से चुनी हुई सरकार अपने वोटबैंक का ख्याल रखते हुए कीमतों पर “कृत्रिम तरीके से‘ लगाम लगाने की भरपूर कोशिश करती है। कीमतों में कमी लाने की प्रक्रिया में कभी कानून का सहारा लिया जाता है तो कभी करदाताओं के पैसे से सब्सिडी प्रदान की जाती है। इससे उपभोक्ता को क्षणिक राहत मिल जाती है लेकिन दीर्घकाल में बाजार, उत्पादक, अर्थव्यवस्था और उपभोक्ता सभी का नुकसान ही होता है।

उधर, आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ यह जानते हैं कि हस्तक्षेप (अपूर्ण प्रतियोगिता) युक्त बाजार में उत्पादक दो प्रकार से मुनाफा अर्जित करता है; (क) मांग की तुलना में उत्पादन को कम रखते हुए कीमतों में अधिक मार्जिन रखकर और (ख) बंपर उत्पादन कर न्यूनतम मार्जिन रखते हुए वस्तु की अधिक से अधिक मात्रा में बिक्री कर।  

लेकिन देश में कृषि एक ऐसा क्षेत्र है जिसे सरकारों और नागरिकों से खूब सहानुभूति होती है। सभी चाहते हैं कि किसान संपन्न हो, समृद्ध हो लेकिन जैसे ही किसानों के आर्थिक लाभ हासिल करने की परिस्थितियां बनती हैं, राहों में तमाम प्रकार के रोड़े भी खूब अटका दिए जाते हैं। अब प्याज की खेती करने वाले किसानों का ही उदाहरण ले लेते हैं। प्याज किसानों की आर्थिक दशा को सुधारने के लिए सरकार ने तमाम जतन किए हैं। लेकिन आवश्यक वस्तु अधिनियम (एसेंसियल कमोडिटी एक्ट) और विदेशी व्यापार अधिनियम [फॉरेन ट्रेड (डेवलमेंट रेग्युलेशन एक्ट] नामक भारी बाधा भी खड़ी कर रखी है। 

आइए पहले जानते हैं कि आवश्यक वस्तु अधिनियम (ईसीए) और विदेशी व्यापार अधिनियम (एफटीडीआर) है क्या? संरक्षणवादी सरकारों द्वारा जनकल्याण के नाम पर कई खाद्यान्नों और उत्पादों को ईसीए और एफटीडीआरके तहत अधिनियमित कर रखा है। इसका अर्थ यह है कि मुनाफे के लिए प्याज का ‘अनुचित तरीके’ से भंडारण नहीं किया जा सकता है और देश में प्याज की कीमतों में ‘असमान्य’ वृद्धि की दशा में विदेशों में किए जाने वाले निर्यात को सरकार नियमित कर सकती है। अकेले वर्ष 2020 में सरकार ने प्याज के निर्यात पर सात बार रोक लगाई और उसमें ढील दी। इससे किसानों और प्याज व्यापारियों को मजबूरी में अपने उत्पाद को कम कीमत में बाजार में बेचने को मजबूर होना पड़ा। विदित हो कि वर्ष 2015-2020 के दौरान दोनों कानूनों के कारण प्याज उत्पादकों को औसतन कुल लागत की महज 20 प्रतिशत राशि ही प्राप्त हो सकी थी। 

प्याज उत्पादक किसानों का कहना है कि प्याज बहुत जल्द खराब होने वाला पैदावार है। ईसीए के कारण व्यापारी प्याज के भंडारण और उसकी व्यवस्था करने में रुचि नहीं रखते। इसलिए किसानों को औने-पौने दामों पर इसे बेचने को मजबूर होना पड़ता है। व्यवसायियों के मुताबिक प्याज की कीमतों में देश में भारी उतार चढ़ाव देखने को मिलता है। फसल के सीजन में बाजार में प्याज कभी 10 रूपए किलो बिकने लगती है तो ऑफ सीजन में इसकी कीमत कभी-कभी 100 रूपए प्रति किलो हो जाती है। यदि भंडारण की पर्याप्त व्यवस्था हो तो कीमतों में इतना उतार चढ़ाव देखने को नहीं मिलेगा। इसके अलावा किसान भी फसल खराब होेने के डर से औने पौने दाम पर अपने उत्पाद बेचने की बजाए थोड़े दिन इंतजार कर सकेगा। 

बड़े और थोक व्यवसायियों के मुताबिक सरकार द्वारा किसी भी समय प्याज के निर्यात पर रोक लगा दी जाती है जिससे उनके व्यापार और साख दोनों का नुकसान होता है। व्यापारी विदेशी व्यापारियों के साथ बहुत पहले करार कर चुके होते हैं लेकिन सरकार द्वारा प्याज के विदेशी व्यपार पर रोक लगा देने से उनका लेनदेन प्रभावित होता है। इससे तत्काल के साथ साथ आगे का व्यपार भी खराब होता है क्योंकि विदेशी व्यपारी अन्य देशों का विकल्प तलाशना शुरू कर देते हैं।

यही कारण हैं कि कुछ समय पूर्व गुजरात के एक प्याज उत्पादक ने अपने सात कुंतल प्याज की कीमत प्रधानमंत्री के जन्मदिवस पर भेंट के रूप में भेज आत्महत्या करने जैसा कदम उठाने को मजबूर हुआ था। पिछले वर्ष भी एमपी के एक किसान को 200 किलो प्याज के बदले मंडी से 2 रूपए प्राप्त होने की रसीद काफी वायरल हुई थी।

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