जॉन लॉक
व्यक्तित्व एवं कृतित्व
[जन्म 1632 – निधन 1704]
जॉन लॉक का जन्म इंग्लैड में हुआ था। वह प्राकृतिक अधिकारों की खातिर लड़ाई लड़ने वाले हठी नायक थे। उनके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति का अपना एक विचार होता है और उसे कुछ आज़ादी भी प्राप्त होती है जिसका हनन राज्य या अन्य किसी व्यक्ति द्वारा नहीं किया जाना चाहिए। कोई भी व्यक्ति जब उत्पादक या रचनात्मक कार्य करने में श्रम करता है तो वह उसकी संपत्ति हो जाती है। किसी भी माल के मूल्य के निर्धारण में प्रकृति से अधिक श्रमिक का महत्व होता है। यह श्रम के मूल्य सिद्वांत की ओर पहला कदम था। जिसे डेविड रिकार्डो और कार्ल मार्क्स ने भी प्रसारित किया।
लॉक का मानना था कि सरकार को ब्याज की दरें ठीक नहीं करना चाहिए। लॉक ने संसद में विधेयक का विरोध किया जिसमें यह प्रस्ताव रखा गया कि अधिकतम आधिकारिक ब्याज दर को छः प्रतिशत से घटाकर चार प्रतिशत किया जाए। उन्होंने इसके पक्ष में यह तर्क दिया कि ब्याज एक कीमत है और सभी कीमतों का निर्धारण प्राकृतिक नियमों द्वारा किया जाना चाहिए। ब्याज दरों की उच्चतम सीमा लेन-देन का परिणाम है। लोगों को उच्चतम सीमा निर्धारण से दूर रहना चाहिए। कीमत में उछाल उच्च ब्याज दरें निर्धारित करता है जितना उच्चतम सीमा से भी निर्धारित नहीं होती। लॉक के तर्क उस समय के बहुत ही शालीन तर्क थे और अपने समय में खरे उतरे। आज भी अर्थशास्त्री ब्याज दरों को नियंत्रित करने के लिए समान रूप से उतनी ही आपत्ति उठाते है।
लॉक ने मुद्रा के मात्रात्मक सिद्वांत की रूपरेखा बनाई जिसके अनुसार मुद्रा का मूल्य प्रतिलोमतः मुद्रा की के प्रसार से संबंधित होगा. लॉक ने इस गलत धारणा को प्रतिपादित किया कि किसी देश में व्यापार के तरह हिस्सेदारों की तुलना में व्यापार के तहत अपने यहां आने वाले सोने की जितनी मात्रा कम होगी उस देश को मंदी का उतना ही ज्यादा खतरा होगा. लॉक का यह मानना था कि सोने की आपूर्ति देश के व्यापार की मात्रा के अनुपात में कम या ज्यादा होगी. वे इस बात से तब तक अनजान रहे जब तक डेविड ह्नयूम ने बताया कि देश में सोने की आवक का विदेश व्यापार से कोई सीधा संबंध नहीं है. यदि ब्रिटेन में अपने सहयोगी व्यापारिक देशों की तुलना में सोने की आवक बहुत कम हुई तो इन देशों की तुलना में ब्रिटेन में वस्तुओं की कीमतें गिर जाएंगी और फिर इसके बाद ज्यादा देशों से इंग्लैंड को सोने की आपूर्ति होगी.
प्रमुख रचनाएं
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