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जॉन स्टुअर्ट मिल

व्यक्तित्व एवं कृतित्व

[जन्म 1806 – निधन 1873]

अर्थशास्त्री जेम्स मिल के सबसे बड़े बेटे जॉन स्टुअर्ट मिल की शिक्षा उनके बेन्थेमाइट पिता की अपेक्षाओं को ध्यान में रखते हुए हुई। उन्हें अपनी उम्र के तीसरे साल में ग्रीक और आठवें साल में लेटिन भाषा सिखाई गई। जब अपनी युवावस्था में पहुंचे तब वह एक विकट बुद्विजीवी थे। जॉन हालांकि भावनात्मक रूप से दबे हुए व्यक्ति थे। नर्वस ब्रेकडाउन से उबर कर ठीक होने के बाद उन्होंने बेन्थेमाइट शिक्षा (उपयोगितावादी दर्शनशास्त्री जर्मी बेन्थम के मुताबिक ) को छोड़ दिया. कुछ समय बाद राजनीतिक अर्थव्यवस्था के सिद्वांत नामक किताब लिखी जो चालीस साल बाद अर्थशास्त्र की प्रमुख पाठ्‌यपुस्तक के रूप में उपयोग की जाने लगी। इस पुस्तक में मिल ने डेविड रिकार्डो और एडम स्मिथ के विचारों की विस्तृत व्याख्या की। उन्होंने अर्थशास्त्र का पैमाना, मौके की कीमत, व्यवसाय में तुलनात्मक लाभ आदि विचारों के विकास में सहायता प्रदान की।

मिल आज़ादी में विश्वास रखते थे- मुख्यतया विचारों और भाषा की आज़ादी। उन्होंने आज़ादी का पक्ष दो आधारों पर लिया। पहला आधार- समाज की उपयोगिता अधिकतम होती यदि प्रत्येक महिला और पुरूष अपने हिसाब से चुनाव कर सके। (मिल का यह विश्वास इसलिए था कि उनके जीवन पर उनकी पत्नी हेरिएट टेलर का प्रभाव था। जिसे वह अपना आदर्श मानते थे। मिल के मतानुसार महिलाऍ पुरूषों के बराबर थी। उनकी पुस्तक ''नारी की अधीनता'' में उन्होंने नारी को विरासत में मिली हीनता के समकालीन विचारों पर प्रहार किया)। दूसरा आधार- आज़ादी व्यक्ति के संपूर्ण व्यक्तित्व विकास के लिए आवश्यक है। आज़ादी पर अपने विख्यात निबंध On Liberty में मिल ने इस सिद्धांत को स्पष्ट रूप से प्रतिपादित किया है कि आत्म रक्षा या खुद को बचा क रखना ''एकमात्र अंत” है जिसकी गिरफ्त में संपूर्ण मानव जाति है, चाहे व्यक्तिगत रूप से या सामूहिक रूप से, वह चाहे जितनी भी संख्या में हो वह उनके हर काम से संबंधित आज़ादी में दखल दे रहा है। अपने साथ रहने लोगों की हम पर को रोकटोक नहीं होनी चाहिए, जब तक हम उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाए. तब भी वे हमारे कार्यो को मूर्खतापूर्ण, उल्टा और गलत मान सकते है। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि मिल मुक्त मुद्रा की नियमित वकालत नहीं करते थे। उसकी जीवनी लेखक एलान रेआन भी अचरज के साथ कहते हैं कि मिल ने ''आज़ादी के अनुबंध'' और ''संपत्ति के अधिकार'' पर कोई विचार नहीं रखे। यह भी तो आज़ादी का ही हिस्सा है। वह व्यापारिक संरक्षणवाद और श्रमिकों के कार्यसमय संबंधी नियमों के पक्ष में थे। रोचक बात है कि मिल ने अनिवार्य शिक्षा का पक्ष लिया। उन्होंने अनिवार्य रूप में स्कूल जाने की वकालत नहीं की। उन्होंने स्कूल वाउचर प्रणाली और सरकारी द्वारा परीक्षाओं की संचालन व्यवस्था के पक्षधर थे जिससे यह ज्ञात हो सके कि लोग एक निश्चित स्तर स्तर पर ज्ञान प्राप्त कर चुके हैं।

यघपि मिल आम चुनाव में सभी लोगों वोट देने के अधिकार का पक्षधर थे लेकिन उन्होंने यह सुझाव दिया कि शिक्षित मतदाताओं को अधिक मत देने का अधिकार होना चाहिए। उन पर यह आरोप लगा था कि वे मध्यम वर्ग का दबदबा चाहते हैं लेकिन उन्होने अपने ऊपर किसी भी तरह के वर्गभेद संबंधी आरोप का पुरजोर खंडन करते हुए शिक्षित वर्ग को अधिक मतों के अधिकार की वकालत की. उन्होंने यह तर्क दिया कि शिक्षित वर्ग चाहे अमीर हो या गरीब उसे मिलने वाले ज्यादा मतों का अधिकार वर्ग-भेद के विरोध संबंधी कानून को संरक्षण देगा। जो भी अधिक शिक्षित होगा चाहे वह गरीब ही क्यों न हो उसके पास अधिक मत होंगे।

मिल ने अपने कार्यकाल का अधिकांश समय ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ काम करके गुजारा। उन्होंने इस कंपनी में 16 वर्ष की आयु से काम करना आरंभ किया और अड़तीस सालों तक काम किया। उनका राजनीति पर थोड़ा प्रभाव था परंतु उनके अनुभवों ने स्वायत्त शासन पर उनके विचारों को प्रभावित किया।

प्रमुख रचनाएं

  • राजनीतिक अर्थशास्त्र के कुछ अनसुलझे सवालों पर निबंध (1844) (Essays on Some Unsettled Questions of Political Economy, 1844)
  • राजनीतिक अर्थशास्त्र के कुछ अनसुलझे सवालों पर निबंध द्वितीय संस्करण (1874) (Principles of Political Economy, with Some of Their Applications to Social Philosophy, 2 vols. 1848)
  • राजनीतिक अर्थशास्त्र के सिद्वांत जिसका सामाजिक दर्द्गानशास्त्र में उसका अनुकरण भाग दो (1848) (Essays on Some Unsettled Questions of Political Economy, Second edition, 1874.)
  • ऑन लिबर्टी- 1859 (On Liberty  1859)
  • ऑन लिबर्टी - चतुर्थ आवृत्ति -1869 On Liberty, Fourth edition, 1869
  • प्रतिनिधि सरकार की सहुलियत – 1861 (Considerations on Representative Government. 1861)
  • नारी की अधीनता – 1969 (The Subjection of Women. 1869.)