सी.वाई. चिन्तामणि
व्यक्तित्व एवं कृतित्व
[जन्म 1880 – निधन 1981]
ये पत्रकार-राजनीतिज्ञ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और असहमति के अधिकार के लिए लगातार संघर्ष करते रहे। इलाहाबाद से निकलने वाले अखबार दि लीडर के संपादक होने के दौरान उन्होंने किसी को नहीं बख्शा। यहां तक कि उन्होंने अपने गुरु गोपाल कृष्ण गोखले तक की भी परवाह नहीं की। वे अखबार के बोर्ड के सदस्यों की आलोचना करने में भी कभी हिचकिचाते नहीं थे और यह उनकी ईमानदारी का ही नतीजा था, जिसने उन्हें हमेशा ही अपने ढंग से काम करने की आजादी दी। वे अपने राजनीतिक जीवन में उदारवाद के समर्थक थे। वे दो बार लिबरल पार्टी (या नेशनल लिबरेशन फेडरेशन) के अध्यक्ष भी चुने गए। वे गांधीवादी सत्याग्रह और असहयोग के समर्थक नही थे, वे उन्हें लोक-लुभावन कदम बताते थे। वे उस समय कांग्रेस में घर कर रहे असहमति को बर्दाश्त न किए जाने के रुझान से भी काफी व्यथित थे।
साभार: इंडियन लिबरल ग्रुप