उत्तर प्रदेश के आलू किसान

यूपी के आलू किसानों का संकट, सरकार से मदद की दरकार

 

आलू किसानों की दुर्दशा की वजह क्या है?

 

उत्तर प्रदेश की मंडियों में भले ही आलू का भाव गिरा हुआ हो लेकिन सियासत के बाजार में आलू आसमान पर है। आलू बेल्ट कही जाने वाले इलाकों में कोल्ड स्टोरेज के बाहर लगी किसानों की लंबी-लंबी कतारें उन सवालों का जवाब पूछ रही है जिसके उत्तर भारतीय राजनीति में आज तक नहीं मिले। सवाल वही पुराना है किसान की फसल का उचित दाम उसको कैसे मिले? चेहरे पर मायूसी और चिंता की लकीरें किसानों के चेहरे पर साफ देखी जा सकती है। बाजार में ना तो फसल का भाव है, न ही आलू को सहेजने के लिए कोल्ड स्टोरेजों में जगह। वही जानकर आपको हैरानी होगी कि यह सारे कोल्ड स्टोरेज ज्यादातर सियासत दानों के ही है। ज्यादातर कोल्ड स्टोर भरा हुआ कहकर लौटा दे रहे हैं। प्रदेशभर में आलू किसानों का यही दर्द है। किसानों का यह दर्द अब सरकार तक भी पहुंचा है। किसानों को कीमत दिलाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं और राजनीति भी खूब हो रही है।

 

अब सवाल ये उठ रहे हैं कि ये नौबत आई क्यों और सरकार जो प्रयास कर रही है, वे कितने कारगर होंगे? इन सबका जवाब जानने से पहले लागत और नफा-नुकसान का गणित समझना जरूरी है।


लागत ज्यादा, दाम कम
नफा-नुकसान की बात करें तो सामान्य तौर पर एक हेक्टेअर में 300 क्विंटल आलू पैदा होता है। बाजार में बेचने पर 350 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से उसे 1,05,000 लाख रुपये मिलेंगे। लागत 1,42, 000 रुपये है। इस तरह बाजार में बेचने पर किसान को 37 हजार रुपये का नुकसान हो रहा है। सरकार ने जो रेट तय किए हैं, उसके अनुसार उसे 1,95,000 रुपये मिलेंगे। ऐसे में उसे एक हेक्टेअर में 53 हजार रुपये मुनाफा होगा। लेकिन सरकारी रेट सिर्फ कागजों तक ही सीमित है किसानों को यह भाव नहीं मिल रहा।


आलू का बढ़ता उत्पादन, रखने की जगह नहीं, दाम भी नहीं
मूलभूत सुविधाओं की कमी की वजह से पहले से ही घाटे में किसान बाजार में आलू ओने पौने दाम पर बेचने को मजबूर है। इसकी बड़ी वजह है आलू का बढ़ता उत्पादन और भंडारण की समस्या। छह साल में यदि हम यूपी में आलू उत्पादन का रेकॉर्ड देखें तो स्थिति साफ हो जाएगी।

 

वर्ष

उत्पादन (लाख टन)

2017 - 18

155.55

2018 - 19

155.23

2019 - 20

140.04

2020 - 21

158.40

2021 - 22

242.75

2022-23 (अनुमानित)

242.93


किसानों ने उत्पादन बढ़ाया, सरकार ने भंडारण नहीं
यूपी सबसे बड़ा आलू उत्पादक राज्य है। देश का 35% आलू उत्पादन यहां होता है।

यूपी में इस साल कुल उत्पादन 242.93 लाख मीट्रिक उत्पादन के मुकाबले भंडारण क्षमता 162 लाख टन है। जितनी क्षमता है, उसका भी 80-85% आलू ही कोल्ड स्टोर में जमा होता है।

कोल्ड स्टोरों की मनमानी भी इसकी वजह है।

किसानों की अक्सर शिकायत होती है कि आलू रखने से कोल्ड स्टोर मना कर रहे हैं। छापेमारी के दौरान यह बात सामने भी आई और कार्रवाई भी होती है।


सरकार के प्रयास
जब संकट खड़ा होता है तो सरकार आलू किसानों को उचित मूल्य दिलाने के लिए प्रयास करती है। आलू भंडारण समस्या से किसानों को निजात दिलाने के लिए यूपी की भाजपा सरकार ने केंद्र सरकार की मदद से ऑपरेशन ग्रीन योजना लागू कर दी है। इसके तहत आलू और टमाटर के भंडारण और भाड़े में 50 परसेंट सब्सिडी देने का प्रावधान किया गया है। इस योजना के तहत आलू क्लस्टर  के 17 और टमाटर क्लस्टर के 19 जिलों के किसानों को इस योजना का लाभ मिलेगा।


आलू क्लस्टर के जिले
प्रयागराज, बाराबंकी, जौनपुर, फिरोजाबाद, फर्रुखाबाद, मथुरा, अलीगढ़, कन्नौज, आगरा, मैनपुरी, हाथरस, कानपुर नगर, हरदोई, शाहजहांपुर, बदायूं, इटावा, संभल शामिल है।


यूपी में अब दूसरे जिलों में भी आलू रख सकेंगे किसान
यूपी के किसान अब दूसरे जिले के कोल्ड स्टोर में भी आलू रख सकेंगे। इसके लिए सरकार 100 रुपये/क्विंटल की दर से सहयोग राशि भी देगी। उद्यान एवं कृषि विपणन राज्य मंत्री(स्वतंत्र प्रभार) दिनेश प्रताप सिंह ने रविवार को यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि आलू खरीद के लिए अभी एक जिले में एक केंद्र खोला गया है। जरूरत पड़ी तो और केंद्र भी खोले जाएंगे। इसके लिए राज्य औद्यानिक सहकारी विपणन संघ (हाफेड) के अलावा अन्य संस्थाओं को भी लगाया जाएगा।

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