देश की धरोहर: खादी
जिस खादी के स्वर्णिम भविष्य की कल्पना स्वयं बापू महात्मा गांधी जी ने की थी, आज 21 वीं सदी में वो अपने जायज मुकाम को छूने के ओर अग्रसर दिख रही है।
- खादी हमारे लिए सिर्फ एक कपड़ा मात्र नहीं बल्कि ये हमारे देश के अस्तित्व, परंपरा, पहचान और संस्कार को भी प्रदर्शित करती है।
- खादी हमारे देश की धरोहर है। जिसे नरेंद्र मोदी की सरकार " आत्म निर्भर" भारत के मंत्र से सहेजने का काम कर रही है।
- आज खादी की गूंज देश के संसद से लेकर ग्लोबल बाजार तक सुनाई दे रही है।
स्वदेशी का हथियार खादी:
1920 में महात्मा गांधी के स्वदेशी आंदोलन में खादी को एक राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया गया था। महात्मा गांधी ने 1920 के दशक में भारत में ग्रामीण स्वरोजगार और आत्मनिर्भरता के लिए खादी की कताई को बढ़ावा देना शुरू किया , इस प्रकार खादी स्वदेशी आंदोलन का एक अभिन्न अंग और प्रतीक बन गया।
खादी इस बार एक लाख करोड़ के पार:
खादी का कारोबार देश में पहली बार एक लाख करोड़ के पार, पिछले वित्तीय वर्ष के मुकाबले 20 फीसदी से ज्यादा का उछाल। पहली बार देश में खादी का कारोबार एक लाख करोड़ रुपये के पार पहुंच गया है। खादी और ग्रामोद्योग आयोग के खादी ब्रांड ने वित्तीय वर्ष 2021-22 में एक लाख करोड़ से भी अधिक का कारोबार करते हुए देश की सभी फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स (एफएमसीजी) कंपनियों को पीछे छोड़ दिया।
आयोग के अध्यक्ष विनय कुमार सक्सेना ने शनिवार को बताया कि, "खादी ने पहली बार एक वित्तीय वर्ष में 1,15,415.22 करोड़ रुपये का कारोबार किया है जो देश में किसी भी एफएमसीजी कंपनी के लिए रिकॉर्ड है। वित्तीय वर्ष 2020-21 में यह 95,741.74 करोड़ रुपये था। उन्होंने बताया कि साल 2014 से अब तक की तुलना में खादी के उत्पादन में 172 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। बीते दो वित्तीय वर्षों में कारोबार 20 फीसदी से ज्यादा बढ़ा है।"
सक्सेना ने बताया कि, "बीते आठ वर्षों में खादी की बिक्री 332 फीसदी बढ़ी है। अकेले ग्रामोद्योग क्षेत्र में ही इस बार 1,10,364 करोड़ रुपये का व्यापार हुआ, जबकि पिछले वित्तीय वर्ष में यह 92,214 करोड़ रुपये था। उन्होंने कहा कि खादी के इस विकास का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निरंतर प्रयासों को जाता है।"
स्वदेशी पर निर्भरता से साकार होती आत्म निर्भरता:
स्वदेशी और विशेष रूप से खादी को बढ़ावा देकर आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए पीएम मोदी की अपील का असर दिखाई दे रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि नई दिल्ली के कनॉट प्लेस स्थित खादी के प्रमुख स्टोर पर एक दिन की बिक्री 30 अक्तूबर 2021 को 1.29 करोड़ रुपये हुई थी, जो अब तक का रिकॉर्ड है।
पीएम मोदी की अपील का असर:
पीएम नरेंद्र मोदी की खादी को अपनाने की अपील का भी असर है कि लोग एक बार फिर खादी अपनाने लगे हैं। खादी के उत्पादन में भी वृद्धि हुई है। स्वदेशी' और विशेष रूप से 'खादी' को बढ़ावा देकर आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए प्रधानमंत्री की बार-बार अपील ने चमत्कार किया है. प्रधानमंत्री के ‘आत्मनिर्भर भारत' और 'स्थानीय के लिए मुखर' के आह्वान का लोगों ने उत्साहपूर्वक स्वागत किया है.
खादी के कारोबार में बढ़ोतरी:
वित्त वर्ष 2021-22 में, केवीआईसी का कुल कारोबार पिछले वर्ष यानी 2020-21 में 95,741.74 करोड़ रुपये की तुलना 1,15,415.22 करोड़ रुपये रहा है. इस प्रकार खादी ने वित्त वर्ष 2020-21 से 20.54 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की है. वित्त वर्ष 2014-15 की तुलना में, वित्त वर्ष 2021-22 में खादी और ग्रामोद्योग क्षेत्रों में कुल उत्पादन में 172 प्रतिशत की भारी वृद्धि दर्ज की गई है. इसी अवधि के दौरान सकल बिक्री में 248 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है. खादी का यह बड़ा कारोबार कोरोना महामारी की दूसरी लहर के कारण पहले तीन महीनों में यानी वर्ष 2021 में अप्रैल से जून तक देश में लॉकडाउन के बावजूद हुआ है।
खादी के उत्पादन में 191 प्रतिशत की वृद्धि:
सक्सेना के मुताबिक पिछले आठ वर्षों के दौरान वित्त वर्ष 2014-15 से 2021-22 में खादी क्षेत्र के उत्पादन में 191 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. खादी की बिक्री में 332 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है. अकेले ग्रामोद्योग क्षेत्र में कारोबार वित्त वर्ष 2021-22 में 1, 10,364 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है, जबकि पिछले वर्ष यह 92,214 करोड़ रुपये था. पिछले आठ वर्षों में, 2021-22 में ग्रामोद्योग क्षेत्र में उत्पादन में 172 प्रतिशत और बिक्री में 245 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
ग्राम स्वराज के सपने को साकार कर रही खादी:
खादी का सस्ते से सस्ता और महंगे से महंगा कपड़ा हाथों से ही बन रहा है। खादी का निर्माण मशीनों से नहीं होता। इससे गांव के लोगों को रोजगार मिल रहा है। खीरी जिले के ओयल कस्बे में एनएमसी चरखा लगा था, लेकिन कुछ दिन पहले वह बंद हो गया। खीरी में खादी का निर्माण नहीं हो रहा है, लेकिन सीतापुर और हरदोई के गांवों में न केवल सूत कातने के चरखे चल रहे हैं, बल्कि कपड़ा बुनाई भी हो रही है। इससे गांव के लोगों को रोजगार मिल रहा है। सीतापुर के जिला कारागार में भी एनएमसी चरखा लगाया गया था, हालांकि अब वह बंद हो चुका है लेकिन महमूदाबाद और पंचमपुर गांव में चरखे अब भी चालू हैं।
डिस्क्लेमर:
ऊपर व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं और ये आवश्यक रूप से आजादी.मी के विचारों को परिलक्षित नहीं करते हैं।
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