दत्तक ग्रहण नियमन 2017

भारत में अनाथ बच्चों की संख्या एक रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक करीब 3 करोड़ से ज्यादा है और गोद लिए जा रहे सालाना बच्चों की संख्या महज 4 हजार है। इतनी बड़े आबादी वाले मुल्क में आंकड़ों का ये अंतर बेहद चिंताजनक और स्तब्ध कर देने वाला है। इसके पीछे सबसे बड़ी समस्या जानकर बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया में बाधाओं और जटिल नियमों को मानते हैं।

सरल बनाई जाए बच्चों को गोद लेने की प्रक्रिया, सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल, कानून में हैं जटिलताएं:

सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें मांग की गई है कि बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया को सरल बनाया जाए। कानूनी जटिलताओं की वजह से पिछले 5 साल में सिर्फ 16,353 बच्चों को गोद लिया जा सका है।

सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया केंद्र सरकार को नोटिस:

बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया को सरल बनाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। याचिका में मांग की गई है कि कोर्ट केंद्र सरकार को आदेश दे कि अनाथ बच्चों को गोद लेने की संख्या में सुधार किया जाए। याचिकाकर्ता पीयूष सक्सेना ने याचिका में ये जानकारी दी है कि दुनिया के अन्य देशों की तरह भारत में अनाथ बच्चों की देखरेख के लिए कोई अलग से मंत्रालय भी नहीं है। याचिका में दिए आंकड़े के मुताबिक देशभर में लगभग 3 करोड़ 10 लाख अनाथ बच्चे हैं, लेकिन कानूनी जटिलताओं की वजह से पिछले 5 साल में सिर्फ 16,353 बच्चों को गोद लिया जा सका है, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका में हर साल 1 लाख 35 हजार बच्चे गोद लिए जाते हैं।

याचिका में कोर्ट से बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया को लेकर ये मांगें की गई है:

याचीकर्ता ने सर्वोच्च न्यायाल को याचिका में दरख्वास्त करते हुए कहा है कि सुप्रीम कोर्ट महिला और बाल कल्याण मंत्रालय को 'हिन्दू दत्तक तथा भरण-पोषण अधिनियम' के व्यापक प्रचार-प्रसार का आदेश दे।  महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को निर्देश दिया जाए कि गोद लेने की प्रक्रिया को और ज्यादा सरल बनाया जाए। साथ ही गैरजरूरी जानकारी न मांगी जाए। एक एडॉप्शन प्रीपेयर स्कीम बनाई जाए जिसके तहत हर जिले में ग्रेजुएट्स को ट्रेनिंग दी जाए ताकि वो गोद लेने की इच्छा रखने वाले दंपत्तियों की मदद कर सकें। अनाथ बच्चों का ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन किया जाए। साथ ही ब्लॉक स्तर पर इन बच्चों के व्यवसायिक प्रशिक्षण दिया जाए।

याचिकाकर्ता द्वारा भारत में गोद लेने की कम संख्या के पीछे 4 मुख्य वजहों को रेखांकित किया गया है:

  • सिस्टम फेलियर:

सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी के पास अलग से कोई विभाग नहीं है जो गोद लेने की चाहत रखने वाले जोड़ों के लिए उपयुक्त बच्चे की खोज में मदद कर सकें। इसके अलावा अनाथ बच्चों को 18 साल की उम्र में आश्रय गृह छोड़ना होता है। लेकिन ऐसे बच्चों को 14 से 18 साल के बीच में इन आश्रय गृहों में इंटरनेट, रोजगार पत्रिका उपलब्ध नहीं हो पाता है ताकि वो अपने भविष्य को बेहतर बना सकें।

  • सामाजिक तानेबाने में जटिलता:

याचिका के मुताबिक भारत में ये सोच है कि अनाथ सिर्फ अनाथालय में रहने के लिए बने हैं। वहीं गोद लेने वाले जोड़े को समाज शक की निगाह से देखता है। जटिल कानूनी प्रक्रिया के पीछे ये सोच है कि गोद लेने वाले माता-पिता लड़के से बंधुआ मजदूरी या लड़की से वेश्यावृत्ति करा सकते हैं। लेकिन सिर्फ कुछ मामलों में गोद लेने के बाद कानून का दुरुपयोग हुआ है। इसका मतलब ये नहीं कि करोड़ों अनाथ बच्चों के बेहतर भविष्य की संभावनाओं को छीना जाए।

  • गोद लेने वाले कानून की अप्रासंगिकता :

भारत में सिर्फ एक कानून (Adoption Regulation 2017) को छोड़कर ज्यादातर पुराने और गैरजरूरी हैं। 

  • पैरेंट्स का बैकग्राउंड जांचने के लिए पैसों की कमी:

किसी भी अनाथ बच्चे को गोद लेने की प्रकिया से पहले एक अनाथालय को संभावित अभिवावक की पृष्ठभूमि की जांच, मेडिकल टेस्ट में कम से कम 1000 रुपए खर्च हो जाता है। लेकिन दुर्भाग्य से अनाथ आश्रमों के पास इसके लिए पर्याप्त बजट नहीं होता है और न ही इसके लिए कोई ऑफिशियल फंड  की व्यवस्था की गई है। कानूनी रूप से एक बच्चे को तभी गोद लिया जा सकता है जब अखबार में विज्ञापन देने के बाद 60 दिन तक उस बच्चे पर कोई दावा नहीं करने आए। लेकिन सरकारें साल में मुश्किल से एक बार विज्ञापन देती हैं और अनाथ बच्चों की संख्या बढ़ती जाती है।

  • अनाथ बच्चों के साथ अत्याचार:

भारत में अनाथ बच्चों को बाल-श्रम में धकेल दिए जाने की आशंका सबसे अधिक रहती है। इसके अतिरिक्त उनके गलत हाथों में पड़ कर अपराधी बन जाने की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। अनाथ आश्रमों में कथित दुराचार के समाचार भी गाहे-बगाहे आते ही रहते हैं। ऐसी भी घटनाएं यदा-कदा सुनने में आती रहती हैं कि गोद लिए बच्चे को घर में नौकर बना कर रख दिया गया। अनाथ बच्चों की तस्करी के मामले भी प्रकाश में आते रहते हैं। सिक्के का दूसरा पहलू यह भी है कि तमाम लोग गोद लिए बच्चों को जी जान से ज्यादा चाहते हैं और उनका अपने से भी ज्यादा ध्यान रखते हैं, उन पर हृदय की गहराइयों से प्रेम और स्नेह लुटाते हैं। लेकिन इसी सबके बीच गोद लेकर बच्चों को बेच देने की घटनाएं भी कभी-कभार सुनने में आती रहती हैं। सरकार अगर सिस्टम में सुधार करेगी को करोड़ों बच्चों का जीवन सुधर जायेगा।

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ऊपर व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं और ये आवश्यक रूप से आजादी.मी के विचारों को परिलक्षित नहीं करते हैं।

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